अविश्वास प्रस्ताव के बहाने राजनीतिक जोर आजमाइश

 संसद में जिन राजनीतिक परिस्थितियों के चलते अविश्वास प्रस्ताव लाया गया उससे पक्ष विपक्ष को भविष्य की राजनीति तय करने में आसानी हो गई है। उस दौरान जहाँ सत्तापक्ष यह बताना चाहता था क्या इन चार सालों में उसके सभी सहयोगी उसके साथ मजबूती के साथ खड़े हैं वहीं विपक्ष की मंशा उसके सहयोगियों में सेंध लगाने की थी। परिणाम तो मिजाजुला रहा लेकिन दोनों ने ही आईना जरूर देख लिया। यही कारण था कि नंबर गेम में काफी कम होने के बावजूद विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया और आननफनन सरकार ने उसे मंजूरी भी दे दी। दरअसल यह सारी कवायद 2019 के आम चुनाव को लेकर की गई थी। वैसे सरकार के खिलाफ अविश्वास का बिगुल सबसे पहले उसी की सहयोगी तेलगुदेशम पार्टी ने बजाया था। उसके नेता और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अपने प्रदेश को शुरू से ही विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते रहे हैं जिस पर सरकार हीलाहवाली करती रही है। जाहिर है प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की और उसके सुर में सुर मिलाते हुए अविश्वास प्रस्ताव की आवाज़ को बुलंद किया। मौजूदा सरकार के खिलाफ यह पहला अविश्वास प्रस्ताव था। पिछले 4 सालों के दौरान जितनी तेज़ गति से सत्ताधारी भाजपा ने देश में अपना जनाधार बढ़ाया और एक के बाद एक चुनावों में अपना परचम लहराया हैउससे सभी विपक्षी पार्टियाँ सकते में हैं। सभी विपक्षी पार्टियों को अब यह लगने लगा है कि भाजपा को रोकने लिए सभी को एकजुट होना बहुत जरूरी है। अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से मजबूरी में ही सही अपने परायों की पहचान हो जाएगी। दूसरी ओर हालांकि भाजपा प्रचंड बहुमत के कारण सुकून में थी लेकिन अपने कार्यकलापों के चलते विपक्षियों की बखिया उधेड़ने को भी बेताब थी। इसका नजारा उस दौरान दिखाई भी दिया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के तर्को पर जोरदार काउंटर अटैक किया। राहुल गांधी शैली को बेशक मजाक बनाया गया किंतु उन्होंने इसे भी अपनी विजय के तौर पर लिया। राहुल गांधी को इस दौरान सबसे बड़ी तसल्ली मिली कि उन्होंने देश के लोगों को मजबूत तरीके से सरकार की कारगुजारी से अवगत कराया।


यों तो अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उठाए गए सारे मुद्दों को राहुल गांधी अपनी जीत के तौर पर देख रहे हैं। लेकिन राफेल के मुद्दे पर वह ज्यादा ही उत्साहित हैं। इसकी वजह है कि यूपीए के शासनकाल में फ्रांस सरकार से राफेल विमान की कीमत 520 करोड़ प्रति विमान तक की गई थी जो अब बढ़कर तीन गुना यानी 16 हज़ार करोड़ से ऊपर पहुँच गई है। इसके अतिरिक्त इनके रखरखाव का ठेका हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) नामक सरकारी कंपनी को दिया गया था जो अब मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी को दे दिया गया है। इस मामले में हालांकि सरकार के अपने तर्क हैं लेकिन उन तर्को पर विपक्ष सरकार की जमकर खिंचाई कर रहा हैं और इस मुद्दे को जमकर जनता के बीच भुना रहा है। दूसरी ओर 2019 के चुनाव के मद्देनजर सरकार पूरे जोरशोर से पिछले चार सालों की उपलब्धियों को गिनाने के लिए जनता के बीच जाने की रणनीति बना रही है। इसके लिए भाजपा ने अपने सभी सांसदों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दे दिए हैं कि वे सभी आगामी आम चुनाव की तैयारियों में अभी से लग जाएं और सरकारी योजनाओं का जमकर प्रचार करें। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में अब एक साल से भी कम समय बचा है। इस दौरान जहाँ भाजपा के लिए बड़ी चुनौती दोबारा सत्ता में वापसी होगी वहीं विपक्षी पार्टियों को अविलंब एकजुट होने की बड़ी कवायद करनी होगी। वर्तमान में जिस तरह विपक्ष भाजपा से मुकाबले के लिए एक अदद नेता की तलाश कर रहा है, उसे देखकर लगता है कि यदि यह तलाश जल्द ही पूरी नहीं हो पाई तो रेत की तरह फिसलते समय से उसे कुछ हाथ नहीं लगेगा और फिर एक बार थोडा फेरबदल के चलते स्थिति जस की तस हो जाएगी।


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